Thursday, November 08, 2012

झुर्रियाँ


मुखौटा ओढकर हँसता रहता हूँ दिन भर..

रात को मुखौटा उतारता हूँ तो
छिली होती है झुर्रियाँ...

उम्र आँसू की आदी हो गई है शायद...

अब सुबह तक रोऊँगा तभी चेहरे का फर्श पक्का होगा,
जान आएगी सीमेंट में...

इतना तो अनुभव है;
मैं अनुभव से बोलता हूँ!!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Wednesday, November 07, 2012

दो बाली धान


हंसिया को चाँद
या चाँद को हँसिया
कहने से
कविता तो बन जाएगी..... बात न बनेगी...

शब्द फसल से निकल आएँगे आगे
और
पूस की रात में ठिठुरता हल्कू
उन्हीं शब्दों की ओस में मरता रहेगा
दो बाली धान के लिए...

भले हीं
झंडों पर लहलहाएगा धान
लेकिन
हल्कू या होरी के पेट
खोखले हीं रह जाएंगें नारों और दोहों की तरह...

फिर किसी
जबरा की साँसों से लिपट कर सोएगा हल्कू
और हम
उस चौपाये को भैरव बाबा का अवतार कर देंगे घोषित..

पूजे जाएँगे बाबा,
लिखी जाएँगीं कविताएँ..

और नज़रों की 'ठेस' लिए कोने में पड़ा हीं रह जाएगा हमारा नायक......

- Vishwa Deepak Lyricist

Tuesday, November 06, 2012

आँखों देखा हाल


इतिहास ताकता है खिड़की से
और देखता है सप्तर्षि,
कुछ सोचता है
फिर कर देता है घोषणा कि
"आसमान सात राजाओं से संचालित था"...

रात के तीसरे पहर में जब खुलती है उसकी नींद
तो भाग कर जाता है वह
दूसरी खिड़की पर
और पाता है एक पुच्छल तारा सरकता हुआ,
वह निकालता है बही
और इस बार लिखता है कि
"काले आसमान पर लाल रोशनी लिए उतरा था एक क्रांतिकारी"...

सुबह
दरवाजे के नीचे से
इतिहास को मुहैया कराई जाती है
एक थाली
जिसमें होती हैं रोटियाँ एक-दो विचारधाराओं की
और थोड़ी पनीली दाल जिसमें तैरता होता है सांप्रदायिकता का पीलापन...
इतिहास यह सब निगल कर अघा जाता है
और सुना देता है अपने हाकिमों को... सारा आँखों देखा हाल..

हाकिम खुशी-खुशी करार देते हैं कि
"पिछली रात जो कि अंधी और बहुराजक थी,
उसे ’फलां’ ने अराजक होने से बचाया".....

इतिहास की कालकोठरी की दूसरी तरफ की दीवार
जिधर न खिड़की है, न कोई झरोखा,
मौन रहकर घूरती है बस..
उसे याद है कि
पिछली शब "पूरनमासी" ने चाँदनी से भिंगो दिया था उसे...

इतिहास तैयारी में है अगली रात के लिए
और दीवार जानती है कि "चाँद फिर न दिखेगा इसे"...
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महीनों बाद
इतिहास को अगवा कर ले गए "दूसरी" सोच वाले..

अब वह "अमावस" की रातों में निहारता है "नियोन लाईट्स"
और लिखता है कि "हज़ार चाँद हैं आसमान में"...

- Vishwa Deepak Lyricist

Monday, November 05, 2012

फिर भी तुम्हारा हूँ


अब भी वहीं से पुकारती हो!!

दस कदम पीछे हटकर
उतर जाओ रास्ते से
या दस कदम बढकर
मुड़ जाओ मेरी तरफ...

यह कशमकश तोड़ो!!

जान लो -
मैं गुजर गया हूँ,
फिर भी तुम्हारा हूँ....

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बँधा हूँ तुम्हारे अहद से,
इसलिए........ खुद लौट नहीं सकता!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Sunday, November 04, 2012

दोनों खीसे खाली हैं


पिछले लम्हे की तरह बीत हीं जाओ तुम...

मालूम है कि धूप थी,
पर वह माज़ी की बात है..

मालूम है कि तुम अब भी पड़ी हो मेरे सीने में,
मगर चौंकती नहीं हर साँस के साथ,
बस चुभती हो ज़रा-सा..

मालूम है कि तुम्हें खो दिया है मैंने..
नहीं....
मुझे मालूम है तुम रख न पाई मुझे संजोकर
और अब
दोनों खीसे खाली हैं...

मालूम है कि जो हुआ..बुरा हुआ,
मगर एक पहचान काफी है हज़ार अच्छी सुबहों के लिए..
इसलिए
यह न कहूँगा कि अजनबी बन जाओ तुम..

बस
पिछले लम्हे की तरह बीत जाओ तुम
ताकि
सुकून मिले तुम्हें भी.....

- Vishwa Deepak Lyricist