Wednesday, October 31, 2012

पत्थर पे इक पत्थर पड़ा


थोड़ा बुझा, थोड़ा उड़ा,
आँखों में जो सपना गिरा,
पत्थर पे इक पत्थर पड़ा,
झरने चले, लावा उड़ा..

अच्छा हुआ, जैसा हुआ,
कसमें खुलीं, किस्सा खुला,
रस्में खुलीं, रस्ता खुला,
सहरा तले दरिया खुला..

- Vishwa Deepak Lyricist

Tuesday, October 30, 2012

अक्षर


अगर कभी बस लिखने के लिए लिखो
तो
मत लिखो..

क्योंकि
लिखने के लिए लिखा
तुम्हारा नहीं होता

वह उसका होता है
जो तुम बनके की कोशिश में है
वह उसका होता है
जो तुम बनते जा रहे हो...

अक्षरों को खुली छूट दो,
अक्षर इंसान नहीं
कि रंग बदलें घड़ी-घड़ी..
अक्षर इंसान नहीं
कि मुकर जाएँ अपनी पहचान से भी..

इसलिए लिखने दो अक्षरों को,
तुम न लिखो
और बस लिखने के लिए
तो कतई नहीं...

- Vishwa Deepak Lyricist

Monday, October 29, 2012

कह कि तेरे कहने से..


कह कि तेरे कहने से कहना बुरा हो जाएगा,
कह कि तेरे कहने से चुप्पी का सूरज छाएगा...

कह कि तेरे कहने की बातें बड़ी बड़बोली हैं,
कह कि तेरे कहने की आदत न नापी-तौली है..

कह कि तेरे कहने से नीयत का रंग खुल जाएगा,
कह कि तेरे कहने से मुझको सबक मिल जाएगा...

- Vishwa Deepak Lyricist

Sunday, October 28, 2012

पत्थर पे माथा धर देना


गर इश्क़ मुझे हो जावे तो..

टुकड़े-टुकड़े दिल कर देना,
पत्थर पे माथा धर देना,
किस्मत में कालिख भर देना..

पर भूल के भी
सुन लो मेरे
प्रश्नों का न कुछ उत्तर देना,
न सपनों को हीं पर देना..
न जुनूं को मेरे घर देना...

बस
चिथड़े-चिथड़े दिल कर देना..

गर इश्क़ मुझे हो जावे तो!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Saturday, October 27, 2012

हर अहद मेरा


चलो मान लिया
कि
तुम सच हो,
हर सोच तुम्हारी सच्ची है...

तो मान भी लो -
हर अहद मेरा
सच्चा है बिल्कुल तुम-सा हीं,
क्योंकि जो भी कुछ मेरा है
सब जुड़ा तुम्हारी सोच से है,
सब बना तुम्हारी सोच से है...

मैं भी अब अलग कहाँ तुमसे...
जो तुम सच तो मैं भी सच हूँ

- Vishwa Deepak Lyricist

Thursday, October 25, 2012

दो फांक


रेवड़ी के भाव
या
चाय-चानी के सही अनुपात में
हर साँस
तुम्हें तौलना-मापना होता है
मेरा प्यार...

मैं गुलाब-जल या केवड़े की तरह
अपनी नसों में
महसूसता रहता हूँ
तुम्हारी मौजूदगी...

तुम समष्टि में व्यष्टि ढूँढती हो
और मैं व्यष्टि में समष्टि..

बस इतना हीं फर्क है
मेरे चाहने
और तुम्हारे
चाहे जाने की चाह रखने में...

बस इतना हीं फर्क है
जो
दो फांक किए हुए है... हम दोनों को!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Tuesday, October 23, 2012

उन्हें भी थोड़ा थक लेने दो


चलो, कुम्हलाया जाए...

हिस्से की हम धूप खा चुके,
रात से "मन" भर ओस पा चुके,
भौरों के संग धुनी रमा चुके,
खाद-पानी के भोग लगा चुके,
आसमान से मेघ ला चुके,
हुआ बहुत, अब जाया जाए,
चलो, कुम्हलाया जाए....

अब औरों को हक़ लेने दो,
गगन का सूरज तक लेने दो,
हवा की चीनी चख लेने दो,
नसों में माटी रख लेने दो,
उन्हें भी थोड़ा थक लेने दो,
सुनो, ज़रा सुस्ताया जाए,
चलो, कुम्हलाया जाए....

चलो!!!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Saturday, October 20, 2012

प्यार की मीठी चाय


तब रोया था वो...

पाँव लफ़्ज़ के उलझ पड़े थे,
छिटक के साँसें - सांय - गिरी थीं,
आँखों के फिर आस्तीन पर
प्यार की मीठी चाय गिरी थी,
बर्फ ख्वाब के पिघल गए तब,
पलक से बूँदें हाय, गिरी थीं..

हाँ, रोया था वो...

- Vishwa Deepak Lyricist

Tuesday, October 16, 2012

मेरी आँखों में सारे साहिल हैं


चाँद पत्थर है,
आसमां पानी,
रात लहरों का उठना-गिरना है...

रात उतरेगी,
आके मुझमें हीं.
मेरी आँखों में सारे साहिल हैं...

चाँद भारी है..
चोट तीखी है..

मेरी यादें हैं...... उसने फेंकी हैं...

- Vishwa Deepak Lyricist

Sunday, October 14, 2012

फिर न आईंदा दिखे


खास बात ये है कि
मैं खास हो चला था जब,
हालात थे तेरे हाथ में
तुझे रास आ गया था तब..

आँखें तेरी थी बाज-सी
जो बाज़ आती थीं नहीं,
बस ढूँढती थी खामियाँ
सीने की मेरी खोह में,
रहती थी इसी टोह में
कि गर जो कुछ ज़िंदा दिखे,
तो फिर न आईंदा दिखे..

कुचले पड़े थे सब मेरे
जज़्बात तेरे दर पे जब,
हाँ, खास बात ये है कि
मैं खास हो चला था तब...

- Vishwa Deepak Lyricist

Friday, October 12, 2012

हारता रहा अपनी नींदें


रात भर तुम्हें सोचता रहा..
रात भर तुम्हारी बादामी आँखें बढाती रहीं मेरी याददाश्त..
रात भर बुनता रहा तुम्हारी पलकों से एक कंबल, एक बिस्तर..
रात भर लेता रहा करवटें तुम्हारे चेहरे के चारों ओर..

रात भर उधेड़ता रहा दो साँसों के बीच के धागे को..

रात भर बस जीता रहा तुम्हें... और हारता रहा अपनी नींदें...

रात भर कातता रहा मैं एक रात,
तुम्हारे ख्वाब में!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Thursday, October 11, 2012

नए सफ़र पे


आओ चलें उफ़क़ की ओर..

रात सजा के,
चाँद जला के,
दिन हो जब तो
धूप उगा के,
धूप गिरे तो
छांव टिका के,
आस की लाठी
हाथ में धर के,
चलें... हम चलें... नए सफ़र पे..

कंकड़-पत्थर
टालते जाएँ,
पथ पे पदचर
डालते जाएँ,
नव-संवत्सर
ढालते जाएँ,
एक-एक पल अपने हिस्से
कर लें नभ के पंख कतर के,
चलें... हम चलें... नए सफ़र पे..

चलो चलें हम
उफ़क़ की ओर,
शफ़क रखें हम
शफ़क़ की ओर,
कदम बढाएँ
अदब की ओर,
नई नब्ज़ से, नए लफ़्ज़ ले,
बढें.. हम बढें और निखर के,
चलें... हम चलें... नए सफ़र पे..

- Vishwa Deepak Lyricist

Tuesday, October 09, 2012

अज्ञानी


तुम परिभाषा में अटकी हो,
मुझे भाषा तक का ज्ञान नहीं,
मैं अभिलाषा को जीता हूँ,
तुम्हें आशा तक का ज्ञान नहीं....

मैं प्रत्याशा पर अटका हूँ!!!
तुम परिभाषा में अटकी हो!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Monday, October 08, 2012

छत्तीस का आंकड़ा


तीन-तेरह करने वाले इस वक़्त का मुहाफ़िज़ है कौन?

क्या वह हो चुका है नौ-दो ग्यारह?

गर आपसे वो कभी दो-चार हो तो पूछ लेना
कि दो जून की ज़िंदगी
चौथे पहर में मिलेगी
या आठवें
या कभी नहीं?

- Vishwa Deepak Lyricist

Friday, October 05, 2012

देवता


मैं तुम्हारी एक बूँद हँसी के लिए,
डाल सकता हूँ कोल्हू में अपनी दो "मन" साँसें...

जानता हूँ कि
तेल निकलेगा और चढेगा किसी देवता पर..

देवता,
जो कतई मैं नहीं!!!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Wednesday, October 03, 2012

कुकुरमुत्ता


कुम्हार की मिट्टी पे कुकुरमुत्ते-सा खड़ा हूँ मैं...
गदहे की टाँगों के इर्द-गिर्द पड़ा हूँ मैं...

कुम्हार ने उठाई खुरपी,
गदहे ने उठाई टांग,
और लो.. कोने में मरा हूँ मैं..

पर ये क्या...
मेरे अंदर का आदमी बोले
कि
गदहे की पीठ पर का घड़ा हूँ मैं..

तब तो कद में
गदहे से भी बड़ा हूँ मैं....

कुकुरमुत्ते-सा खड़ा हूँ मैं...

- Vishwa Deepak Lyricist