Wednesday, February 01, 2012

जानम



हिरणों-सा अल्हड़ मौसम,

मखमल पे उतरे छम-छम,
बर्फानी फाहों में फिर फूले-फले..

चिड़ियों-सा मेरा मन भी,
तिर-तिर के अंबर तक की
बर्फानी राहों में कुछ चुनता चले...

राहों फाहों में जो है
क्या है दिल के सिवा..
धड़के फड़के है हर पल
चाहत की बनके दुआ..

हल्की फुल्की
नभ से ढुलकी
ठंढी ठंढी गीली चाँदनी में

तुझको सोचूँ
तुझको खोजूँ
बहकूँ दहकूँ तड़पूँ बावली मैं..

उजले उजले 
पत्तों पर जब दिन बरसे
उलझी सुलझी
शाखों के तब मन हुलसे
चुपके चुपके
ऐसे में एक दिल तरसे
रब हीं समझे
तुझ बिन कितना मन झुलसे..

तभी गर जानम
तू आके
मिल जाए..
उसी पल पूनम
बल खाके
खिल जाए..
उसी पल नीलम
से धरती
सिल जाए..
उसी पल लमसम
ये मेरा 
दिल जाए..

हिरणों-सा अल्हड़ मौसम,
मखमल पे उतरे छम-छम,
बर्फानी फाहों में फिर फूले-फले..

चिड़ियों-सा मेरा मन भी,
तिर-तिर के अंबर तक की
बर्फानी राहों में कुछ चुनता चले...

उड़के देखूँ
मुड़के देखूँ
आती जाती आहट तेरी लगे..

कुहरे का घर
बस दो पग पर
झीनी झीनी चौखट तेरी लगे..

मेरे ओ हमदम
ये सारी
रूत पूछे
भींगी ये शबनम
रातों को
उठ पूछे
कैसा तू जालिम
ना तुझको 
कुछ सूझे
तुझे माँगे मन
काहे ना
तू बूझे..

हिरणों-सा अल्हड़ मौसम,
मखमल पे उतरे छम-छम,
बर्फानी फाहों में फिर फूले-फले..

चिड़ियों-सा मेरा मन भी,
तिर-तिर के अंबर तक की
बर्फानी राहों में कुछ चुनता चले...


इस गाने को मीरा मनोहर की आवाज़ में यहाँ सुन सकते हैं, संगीत है किच्चा का...

2 comments:

vidya said...

आपकी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी...

आपका ब्लॉग फोलो करने की कोशिश की मगर हो नहीं पाया..चलिए फिर दुबारा आती हूँ ..

शुभकामनाएँ.

SKT said...

क्या बात है सर, कविता में कमाल ला रहे हो...बस गज़ब ढा रहे हो!!