Saturday, December 10, 2011

बस असर मैं कातिलाना चाहता हूँ

इश्क़ मैं कुछ यूँ जताना चाहता हूँ, 
मौत के घर आशियाना चाहता हूँ.. 


कब मिली है, कब मिलेगी ज़िंदगी, 
जानकर भी आजमाना चाहता हूँ.. 


कारगर है तेरी अंखियों का हुनर, 
पर असर मैं कातिलाना चाहता हूँ.. 


प्यार में जन्नत मिले- ऐसा नहीं, 
बस ज़रा-सा आबो-दाना चाहता हूँ 


मैं ’मुकम्मल’ हूँ कि हूँ ’तन्हा’ बता, 
आज ये उलझन मिटाना चाहता हूँ... 


- विश्व दीपक

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