Saturday, October 16, 2010

बेशरम चटोरी है


दिन का कनस्तर है
रात की कटोरी है,
धूप-घाम थोक में है
ओस थोड़ी-थोड़ी है,
अंबर पे क्या कोई
तिलिस्मी तिजोरी है?
रोज़-रोज़ उपजे है
रोज़ की हीं चोरी है..

धरती की भूख तो
बेशरम चटोरी है,
तिल-तिल निगले है
तिस पे सीनाजोरी है..


-विश्व दीपक

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