Sunday, October 17, 2010

साँसों की पैदावार


मन की बुनियाद खत्म जानो,
ख्वाबों की खाद खत्म जानो,
जज्बों के जल कोई लूट गया,
हसरत के हल कोई लूट गया,
हिम्मत के दोनों बैल गए,
कुछ बीज जले, कुछ झेल गए,
जो हौसले थे.. खेतिहर कभी,
मर रहे भूखे.. बेमौत सभी..

हाँ, कभी ये तन उर्वर तो था,
ना सोचा था.. ऊसर होगा,
पर धोखों ने यूँ दगा दिया,
दमखम में दीमक लगा दिया
चट-चट कर हड्डी दरक रही,
फट-फट के माटी फरक रही,
तबियत पर सौ हथियार चढे,
खुन्नस के खर-पतवार बढे..

ऐसे में सूद माँगते हैं
रिश्तों के साहूकार सभी,
क्या करूँ, कहाँ से लाऊँ मैं
साँसों की पैदावार अभी?


-विश्व दीपक

Saturday, October 16, 2010

इन अधरों पर अम्ल बसे


इन अधरों पर अम्ल बसे, तुम इनके निकट यूँ आओ ना,
ये शुष्क सुप्त हैं अच्छे भले, तुम इनमें प्रीत जगाओ ना..

कभी इनकी भी थी एक भाषा,
कभी इनपे सजी थी अभिलाषा,
कभी ये भी प्रीत-पिपासु थे,
कभी ये भी चिर-जिज्ञासु थे,
पर रूग्ण हैं ये तब से... जब से
यह विश्व हो चला दुर्वासा..
निष्ठुर इस जग के शापों पर तुम ऐसे घी बरसाओ ना,
ये शुष्क सुप्त हैं अच्छे भले, तुम इनमें प्रीत जगाओ ना.


-विश्व दीपक

दुनिया तो अक्कड़-बक्कड़ है


ये दुनिया लाल-बुझक्कड़ है,
यहाँ डेग-डेग पे चक्कर है,
बोली में सौ मन नीम भरा,
लल्लो-चप्पो में शक्कर है..

तुम भी तो कुछ पासे फेंको,
शेखी बघार लो.. टक्कर है,
या फूंक डालो घर अपना हीं,
सब कहेंगे दुखिया, फक्कड़ है..

अरे बचो, देह न तोड़ दे ये
सच जानलेवा है, झक्कड़ है,
क्यों इसे सुधारने बैठे हो,
दुनिया तो अक्कड़-बक्कड़ है...


-विश्व दीपक

मन खरा सोना है


मन मूंगा है, मन माटी है,
मन खरा सोना है... खांटी है..

मन तेरे मन की जाने है,
जहाँ नौ-नौ मन तो बहाने हैं,
जो तू मन से मुझको चाहे है,
तो ये नखरे काहे उगाहे है,
मन मार ना... मन को कोस न तू,
मन दे दे... मन यूँ मसोस न तू...
कि मेरे नाजुक मन को तेरा
मन रोज़ी-रोटी है... लाठी है..
मन खरा सोना है... खांटी है..


-विश्व दीपक

उसे इंसान कहना कितना जायज है


एक इंसान जिससे नफ़रत है मुझे...
कभी-कभी यह सोचता हूँ कि
उसे इंसान कहना कितना जायज है..

वह बढना जानता है
किसी भी कीमत पर..
कल दो नरमुंडों पर चढकर
छह इंच और ऊँचा हो गया..

नरमुंड... उसी के माँ-बाप के..

दूसरों की साँसें चुराकर
अपनी उम्र में ठूंसता है,

साँसे... उसी के चापलूसों की..

हाड़-माँस से सिला
एक अभिशाप है.. वह इंसान
जिससे नफ़रत है मुझे...


-विश्व दीपक

ज़िन्दगी का खर्चा है


इश्क़-विश्क़ के इम्तिहान में,
अव्वल आने को हर कोई
नकल कर रहा खुलेआम हीं
लिए दिल में दिल का पर्चा है..

मगर ध्यान रहे.
पकड़े गए तो
दुनिया की इस कोतवाली में
तुरंत जमानत पाने खातिर
एक ज़िन्दगी का खर्चा है.


-विश्व दीपक

बेशरम चटोरी है


दिन का कनस्तर है
रात की कटोरी है,
धूप-घाम थोक में है
ओस थोड़ी-थोड़ी है,
अंबर पे क्या कोई
तिलिस्मी तिजोरी है?
रोज़-रोज़ उपजे है
रोज़ की हीं चोरी है..

धरती की भूख तो
बेशरम चटोरी है,
तिल-तिल निगले है
तिस पे सीनाजोरी है..


-विश्व दीपक