Tuesday, April 20, 2010

तो क्या करिए..


इफ़रात में गर इनकार मिले,
तो क्या करिए जब प्यार मिले.......

जब नगद की भद ना बची रहे,
मोहलत की हद ना बची रहे,
जुर्रत की ज़द ना बची रहे,
ठीक तभी
हाँ ठीक तभी
संगदिल साहूकारों के
हीं साथ खड़े होशियारों से
बिना किसी मियाद के हीं
उधार मिले
तो क्या करिए....

इज़हार की शक्ल से अंजाने
किसी आशिक़ को
औनी-पौनी हीं सही
मगर
"हामी" की हूर का किसी डगर
दीदार मिले
तो क्या करिए...

जिसे
इफ़रात में बस इनकार मिले,
इंतज़ार मिले...इंतज़ार मिले,
वो जी उट्ठे या मर जाए
जो नज़र कभी इक बार मिले...

तो क्या करिए जब प्यार मिले?


-विश्व दीपक

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