Saturday, April 03, 2010

या मेरे परवरदिगार


मुखड़ा

रूखी-सूखी भूख ओढकर अजब बनाया भेष,
आसमान के तारे चुगना, दस्तूर-ए-दरवेश।

अंतरा 1

बिखरे दयार में,
इस रोजगार में,
परवरदिगार , या मेरे परवरदिगार आ,
घनी रात छा गई है, रस्ता ज़रा दिखा..

खुद को तो कर बयाँ,
खुदा! मौला! अल्लाह!
खुद को तो कर बयाँ,
तेरा नूर हो अयाँ..

सुन ले इस दर-बदर दरवेश की सदा,
परवरदिगार, या मेरे परवरदिगार आ।

अंतरा 2

सज़दे किया करूँ,
तोहमत लिया करूँ,
बेखौफ, बेसबब, दर तेरे ऎ खुदा,
घनी रात छा गई है, रस्ता ज़रा दिखा..

रहबर , ओ रहनुमा,
खुदा! मौला! अल्लाह!
रहबर, ओ रहनुमा,
तुझपर हीं है गुमाँ..

सुन ले इस दर-बदर दरवेश की सदा,
परवरदिगार, या मेरे परवरदिगार आ।


-विश्व दीपक

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