Friday, June 15, 2007

वक्त (पार्ट ५)

कुछ साल पहले,
हम तीन संग थे-
तुम , मैं और वक्त,
फिर तुम कहीं गुम हो गए,
तब से न जाने क्यों
वक्त भी मुझसे रूठ गया है,
सुनो -
तुम बहुत प्यारी थी ना उसको,
शायद तुमसे हीं मानेगा,
उसे बहला-फुसलाकर भेज दो,
और सुनो,उसके लिए-
तुम भी आ जाओ ना।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

6 comments:

BiDvI said...

मन में प्रेमिका के लौटने की उम्मीद को जगाते हुए ......
प्रेमी के कलम से निकले उदगार सच में बहुत ही भाव पूर्ण है ....
आपको बधाई

Rahul said...

prarthna hai.. jiski chah mein aapka mann itna udaas hai, jiske liye waqt aapse naraz hai, woh aapko jald hi mil jaaye..

aur issbaar agar mil jaye to dekhna phir se juda na ho..

Anonymous said...

वाह!

इतने प्यार से बुलाओगे तो जरूर लौट आयेगी :)

अग्रिम बधाई!:)

राजीव रंजन प्रसाद said...

इस रचना के लिये केवल एक शब्द - वाह!!

*** राजीव रंजन प्रसाद्

महावीर said...

वाह! क्या बात है!
सुंदर रचना है।

रंजू भाटिया said...

कुछ साल पहले,
हम तीन संग थे-
तुम , मैं और वक्त,

bahut sundar ..kabhi kabhi likha hua ek samanata si dikahne lagata hai ..yah lafaz mere dil ke bahut kareeb hain ...bahut sundar