Saturday, March 24, 2007

अश्क

अश्कों से इश्क की है यारी , क्या कहें,
यही शौक , है यही दुश्वारी , क्या कहें।

कीमत खुदा की बेखुदी में भूलता रहा,
उसने भी की रखी थी तैयारी , क्या कहें।

ता-उम्र होश देने के ख्वाहिशमंद थे,
दी आपने जिगर की लाचारी ,क्या कहें।

सदियों ने मेरी किस्मत को लूटा इस कदर,
है आई बारहा मेरी बारी, क्या कहें।

यूँ बिस्मिल है 'तन्हा' अपना दर्द कह रहा,
कब की हीं खो चुका है खुद्दारी,क्या कहें।


-विश्व दीपक 'तन्हा'

4 comments:

Monika (Manya) said...

अच्छी लगी आपकी शायरी, क्या कहें..

ghughutibasuti said...

अच्छी लगी। सुन्दर है ।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

खूबसूरत. बधाई!!!

Mohinder56 said...

सुन्दर गजल, मुबारक हो