Thursday, February 08, 2007

कठफोड़्वा

रूह काट कर, नमक डाल कर रखा है,
तुम्हारे दर्द को अपने दर्द से चखा है।

पत्थर हूँ,पत्थरों का अहसानमंद हूँ,
सीने की आग साँसों में संभाल कर रखा है।

हिंदू हूँ, मुसलमां से रश्क क्यों रखूँ,
खुदा ने खून संग-संग उबाल कर रखा है।

हाकिम से वक्त लेकर दुनिया में हूँ आया,
रकीबों ने मेरे वास्ते जाल कर रखा है।

हैं लाख के घरोंदे , कई लाख जिस्म हैं,
इक नाम ने माचिस से बवाल कर रखा है।

मंदिर में नमाजी हैं ,मस्जिद में पुजारी,
इस मौत ने धर्म से सवाल कर रखा है।

कठफोड़वा बना है 'तन्हा' क्या आजकल,
काठ की आँखों पर करवाल कर रखा है।

-विश्व दीपक 'तन्हा'