Wednesday, July 05, 2023

तुम.. मेरी बेटी

तुम्हारी हथेली की लकीरों पर मैंने अपने अस्तित्व के बीज़ छोड़ रखे हैं. तुम्हारी हँसी एक कुएँ में घुली चाशनी है. हर सुबह उतरता धुँधलका तुम्हारी आँखों की चिड़ियों की जोहता है बाट.

लिखूँगा

गीतों में, गज़लों में एक चहारदीवारी है। मैं तुम्हारे प्रेम को लिखूँगा एक अकविता में। . असमझा एक विषय, अनुपजा एक ख्याल, या फिर अनलिखी एक कविता - प्रेम यही है। . क्या हीं लिखूँगा! . बस महसूसूँगा।

Friday, February 18, 2022

चलो प्रेम करें

चलो प्रेम करें. एक दूसरे की झुंझलाहट झेल चुकने के बाद अहम को दें तिलांजलि और गले मिल घंटों रोएँ प्रेम में जब आ जाए सच कहने की ताकत- सुनने का हौसला और बनावटीपन हो दरकिनार तब एक-दूजे को अनकहे निहारते हुए चलो प्रेम करें। तुम्हें बुरा लगे मुझ कवि का कुछ न लिखना, मुझे लगे अजीब तुम्हारा अचानक कभी कुछ भी न लगना अजीब. हम बच्चों को संभालते, संवारते जब बस दर्ज करते रहें अपनी उपस्थितियाँ, तब किसी लम्हे तुम या मैं हो जाएं शरारती और पूछें, बताएँ, आदेश दें कि चलो प्रेम करें। क्या कहती हो?

Monday, August 09, 2021

बेटी

बेटी! तुम रोज़ आकाश गढ़ती रहना। मैं तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए बेझिझक उड़ता रहूँगा। . अपनी गोद खुली रखना जहाँ मेैं खुलकर हँस सकूँ, रो सकूँ, भरपूर रो सकूँ। . सकुचाए हुए रिश्ते सिकुड़ जाते हैं। तुम दोस्त रहना! . बेटियों! न कमना, न थमना। बढना और बढ़ते हुए नज़र ऊँची रखना। . तुम इस पिता की सृष्टि की दो सुंदर कृतियाँ हो।

Sunday, April 18, 2021

समाज

प्रेम समाज से, समाज के उस वर्ग से जिसे समाज कहना जायज हो। खरपतवारों की भीड़ खा जाती है ज़मीन को और पास खड़े पौधे भी बनने लगते हैं ठूंठ। इसलिए सावधान!!!!! जिन सबने पंखों के लालच में नोंच डाली हैं अपनी जड़ें - उन्हें उनका क्षणभंगुर आसमान मुबारक! मैं अपनी चहारदीवारी में खुश हूँ।